परिषदीय शिक्षक इन दिनों शक्तिमान की भूमिका में है, एक पल में लिपिकीय कार्य तो दूसरे पल में बच्चों को दक्ष बना रहे है। विभाग शिक्षकों को अल्लादीन का चिराग समझ बैठा है और समझे भी क्यों नहीं शिक्षक जब प्रतिदिन विभागीय आदेशों का टास्क पल भर में निपटा रहा हो और चार माह से बिना हथियार के जंग लड़ नौनिहालों का भविष्य सवार रहे है तो ऐसे में शिक्षक से बड़ा योद्धा कौन हो सकता है। शिक्षक बदलते परिवेश में भी अपने फर्ज को निभा रहे है भले ही - मानसिक तनाव से जूझ रहे हो।
उल्लेखनीय है कि इन दिनों परिषदीय स्कूल जांच और दर्शायी जा रही खामियों से सुर्खियों में है। शिक्षक अपने पद की गरिमा को बचाने के लिए न चाहकर भी वो सब कर रहे है जो शिक्षक के कार्यक्षेत्र के बाहर भी है। अचानक शिक्षकों के ऊपर उठे सवालों से शिक्षक विवश होकर मानसिक युद्ध लड़ रहा है।
प्रदेश के तमाम विभाग जहां अपने अधिनस्थ विभागों की कमियों को उजागर करने से हिचकते है वहीं शिक्षा विभाग का जांच के नाम पर प्रतिदिन उपहास उड़ाया जा रहा है।
बताते चले कि परिषदीय शिक्षक नये शैक्षिक सत्र से ही डीबीटी, निपुण भारत प्रशिक्षण, निर्वाचन ड्यूटी, मध्याहन भोजन, यू ट्यूब सेशन, नवीन नामांकन, संचारी रोग नियंत्रण, नवीन छात्रों डीबीटी अपलोड, निपुण भारत क्वीज, शारदा कार्यक्रम, हाउस सर्वे व ड्राप आउट नामांकन, आधार नामांकन/ अपडेशन शिविर, आडिट, पेरोल लाक, अधिगम क्षति माड्यूल शिक्षण, निःशुल्क पाठय पुस्तक विवरण, एमडीएम उपभोग, प्रबंधन समिति बैठक, अभिभावक बैठक, विद्युत व शौचालय का विवरण, हर घर तिरंगा कार्यक्रम, डीबीटी यू ट्यूब सेशन में अभिभावकों का प्रतिभाग, कोरोना कंट्रोल ड्यूटी, मतदाता जागरुकता अभियान जैसे सैकड़ो विभागीय और गैर विभागीय कार्य को निपटा रहे हैं और बिना किताब के ही बच्चो में शैक्षणिक दक्षता भी अर्जित करा रहे है।
इन सब के बाद भी निरीक्षणकर्ता स्कूलों पर पहुंच खामियां गिना रहे है जो शिक्षकों को मानसिक अवसाद में डूबो रहा है। संसाधनों के अभाव में कान्वेंट को मात दे रहे परिषदीय शिक्षकों का उत्साहवर्धन के बजाय हतोत्सित करना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मनसूबों पर पानी फेर सकता है।
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